पूरा नाम – सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले
जन्म – 3 जनवरी 1831
जन्मस्थान – नायगांव, महाराष्ट
पिता – खंडोजी नावसे पाटिल
माता – लक्ष्मीबाई
विवाह – ज्योतिराव फुले
****प्रारम्भिक जीवन ****
उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने की बात करती है :-
जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर,
बनो मेहनती
काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है
इसलिए, खाली ना बैठो, जाओ, जाकर शिक्षा लो
तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है,
इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो.
सावित्री बाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में आज ही के दिन 3 जनवरी 1831 को हुआ था. उनके पिता का नाम खंडोजी नावसे पाटिल और माता का नाम लक्ष्मीबाई था. उनका पूरा परिवार कृषि कार्य ही करता था. उस दौर में लड़कियां तो दूर लड़कों को भी पढ़ने नहीं भेजा जाता था. इसके बाद 9 वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह 1840 में 13 साल के महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ कर दिया गया. सावित्रीबाई और ज्योतिराव को दो संताने थी जिसमे से एक संतान यशवंतराव को उन्होंने एक विधवा ब्राह्मण गोद लिया था. सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।
****शिक्षा के क्षेत्र में कार्य और विरोध****
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला.
वे स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।
****अन्य सामाजिक कार्य****
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
भारत में नारी शिक्षा के लिये किये गये पहले प्रयास के रूप में महात्मा फुले ने अपने खेत में आम के वृक्ष के नीचे विद्यालय शुरु किया। यही स्त्री शिक्षा की सबसे पहली प्रयोगशाला भी थी, जिसमें सगुणाबाई क्षीरसागर व सावित्री बाई विद्यार्थी थीं। उन्होंने खेत की मिटटी में टहनियों की कलम बनाकर शिक्षा लेना प्रारंभ किया। सावित्रीबाई ने देश की पहली भारतीय स्त्री-अध्यापिका बनने का ऐतिहासिक गौरव हासिल किया। धर्म-पंडितों ने उन्हें अश्लील गालियां दी, धर्म डुबोने वाली कहा तथा कई लांछन लगाये, यहां तक कि उनपर पत्थर एवं गोबर तक फेंका गया। भारत में ज्योतिबा तथा सावि़त्री बाई ने शुद्र एवं स्त्री शिक्षा का आंरभ करके नये युग की नींव रखी। इसलिये ये दोनों युगपुरुष और युगस्त्री का गौरव पाने के अधिकारी हुये । दोनों ने मिलकर ‘सत्यशोधक समाज‘ की स्थापना की। इस संस्था की काफी ख्याति हुई और सावित्रीबाई स्कूल की मुख्य अध्यापिका के रूप में नियुक्त र्हुइं। फूले दंपति ने 1851 मंे पुणे के रास्ता पेठ में लडकियों का दूसरा स्कूल खोला और 15 मार्च 1852 में बताल पेठ में लडकियों का तीसरा स्कूल खोला।
****देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता****
लेकिन एक ऐसी महिला जिन्होंने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरूद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया पर उसे हिंदुस्तान ने भुला दिया.ऐसी महिला को हमारा शत-२ नमन…
महात्मा फुले द्वारा अपने जीवन काल में किये गये कार्यों में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा। लेकिन फुले दंपति के कामों का सही लेखा-जोखा नहीं किया गया। भारत के पुरूष प्रधान समाज ने शुरु से ही इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया कि नारी भी मानव है और पुरुष के समान उसमें भी बुद्धि है एवं उसका भी अपना कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व है । उन्नीसवीं सदी में भी नारी गुलाम रहकर सामाजिक व्यवस्था की चक्की में ही पिसती रही । अज्ञानता के अंधकार, कर्मकांड, वर्णभेद, जात-पात, बाल-विवाह, मुंडन तथा सतीप्रथा आदि कुप्रथाओं से सम्पूर्ण नारी जाति ही व्यथित थी।
उनकी बनाई हुई संस्था ‘सत्यशोधक समाज‘ ने 1876 व 1879 के अकाल में अन्नसत्र चलाये और अन्न इकटठा करके आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों को खाना खिलाने की व्यवस्था की। 28 जनवरी 1853 को बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की, जिसमें कई विधवाओं की प्रसूति हुई व बच्चों को बचाया गया। सावित्रीबाई द्वारा तब विधवा पुनर्विवाह सभा का आयोजन किया जाता था। जिसमें नारी सम्बन्धी समस्याओं का समाधान भी किया जाता था।
****जीवन के अंतिम दिन****
महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई। तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया। सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजांे की देखभाल करने के दौरान हुयी।
*देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले के जीवन की दस बातें**
आज देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका, कवि और वंचितों की आवाज उठाने वाली सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले की पुण्यतिथि है. पेश हैं उनके बारे में दस खास बातें....
1. इनका जन्म 3 जनवरी, 1831 में दलित परिवार में हुआ था.
2. 1840 में 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई की शादी 13 साल के ज्योतिराव फुले से हुई.
3. सावित्रीबाई फुले ने अपने पति क्रांतिकारी नेता ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला.
4. सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापक-नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं.
5. उन्होंने 28 जनवरी 1853 को गर्भवती बलात्कार पीडि़तों के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की.
6. सावित्रीबाई ने उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया.
7. सावित्रीबाई फुले ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलवरी करवा उसके बच्चे यशंवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशवंत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया.
8. महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई. तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया.
9. सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुई.
10. उनका पूरा जीवन समाज में वंचित तबके खासकर महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में बीता. उनकी एक बहुत ही प्रसिद्ध कविता है जिसमें वह सबको पढ़ने लिखने की प्रेरणा देकर जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों को फेंकने की बात करती हैं...
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